जब किसी स्तिथि में व्यक्ति तनाव या चिंताग्रस्त होता है तो उसके मन एवं शरीर में हारमोनो की वजह से कुछ परिवर्तन होते हैं। ये परिवर्तन और चिंता सम्बन्धी विचार दोनों मिलकर काफी डरावनी स्तिथि पैदा कर देते हैं। ये दोनों एक दूसरे को बढ़ाने का काम भी करते हैं।
स्वाभाविकतया कोई भी चाहेगा की इस तरह की अनचाही और डरावनी स्थिति न पैदा हो। बस यहीं से परेशानी की शुरुवात हो जाती है। व्यक्ति इस तरह की परिस्थिति एवं विचार का सामना करने की स्थिति न आये ऐसा प्रयत्न करता है। और ये प्रयत्न ही व्यक्ति के जीवन को सीमित कर देते हैं।
आपने भी देखा होगा कि इस तरह से पीड़ित व्यक्ति कैसे कुछ विशेष परिस्थितियों, स्थानों, घटनाओं या व्यक्तियों से बचने के लिए अपने दैनिक जीवन क्रम में परिवर्तन लाते हैं। उनका मुख्य उद्देश्य डर और चिंता से बचना होता है। परन्तु उनसे बचने के लिए वे प्रतिदिन सैंकड़ों ऐसी स्थितियों से बचते हैं जो उनके जीवन के लिए महत्वपूर्ण होती।
सोशल एन्ग्जाएटी से पीड़ित व्यक्ति समूह में रहना या बात करना टालता है। वह पार्टियों में एक कोने में खड़े होकर मोबाइल पर या अन्य किसी कार्य में व्यस्त होने का नाटक कर सकता है। या फिर पार्टियों में जाना ही बंद कर सकता है। सभाओं में बोलना उसके लिए संभव नहीं हो पता। वह बोलने की कोशिश ही नहीं करता।
इन सब कारणों से वह अपना जीवन ही नहीं जी पाता। उसको मिलने वाले मौके सीमित हो जाते हैं। वह समाज से कट जाता है। आत्मीय सम्बन्ध बनाना उसके लिए संभव नहीं हो पाता। थोड़े में इसे हम सामजिक विकलांगता कह सकते है।
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