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Friday, March 5, 2010

डर और उद्दिग्नता

The truth is that our finest moments are most likely to occur when we are feeling deeply uncomfortable, unhappy or unfulfilled. For it is only in such moments propelled by our discomfort, that we are likely to step out of our ruts and start searching for truer answers.--M.Scot Peck.


कभी आपको ऐसा लग सकता है की आप बहुत अकेले हैं। मेरी उद्दिग्नता बहुत अधिक है और मुझे कोई समझने वाला नहीं है।
मई आपको बता दूँ कि ऐसा सोचने वाले आप अकेले नहीं है। सामान्य चिंता विकार से ग्रस्त व्यक्तियों की संख्या बहुत अधिक है। वे हर शहर, प्रदेश और देश में रहते हैं। वे सभी जातियों में पाए जाते हैं। वे गरीब या आमिर किसी को भी हो सकते हैं।

दर और उद्दिग्नता में अंतर
डर एक त्वरा प्रतिक्रिया है जो जीवन बनाये रखने के लिए बहुत आवश्यक है।जब हमारा जीवन या सुरक्षा खतरे में रहते हैं। ये हमें सुरक्षात्मक कदम उठाने के लिए सहायता करती है। जब यह भावना उदित होती है तब बहुत सारी क्रियाएं शरीर में होती हैं। धड़कन बढ़ जाती है। सांस फूल सकती है। ब्लड प्रेसर बढ़ सकता है। गर्मी का अनुभव होता है। पेट में गड़बड़ महसूस हो सकती है चक्कर और पसीना आ सकता है।
ये सभी प्रतिक्रियाये आपको अतिरिक्त उर्ज्या प्रदान करती हैं। यह हार्मोन एड्रीनलीन के कारण होने वाले परिवर्तन हैं। यह व्यक्ति के लड़ने या भागने की पुर्वतैयारी है।
डर से आप अपने आस पास की वस्तुओं के प्रति अधिक सजग हो जाते हैं। इसके कारण आप डर के कारण की तरफ पैनी नज़र रख सकते हैं। यह आपको विपरीत परिस्थितियों में त्वरित कार्य करने के लिए मदद करता है।

इसके विपरीत उद्दिग्नता इक ऐसी स्थिति है जो भविष्य में होने वाली किसी घटना के लिए होती है। इसमे चिंता मांसपेशियों में तनाव और वे सभी परिवर्तन होते हैं जो डर में होते है। परन्तु ये परिवर्तन उतने तीव्र नहीं होते जितने कि एन्ग्ज़ाइटी में होते हैं। परन्तु ये काफी लम्बे समय तक चल सकते हैं। कम या अधिक मात्रामें दिनों हफ़्तों, या महीनो- सालों चल सकते हैं। उद्दिग्नता का स्त्रोत मन है न कि खतरे का वास्तविक रूप से होना।

2 comments:

  1. जिन अनुभवों से होकर मै खुद गुज़रा हूँ और मैंने उनपर विजय पाने के लिए जो प्रयत्न किये हैं उन्हें ही मै लिख रहा हूँ। शायद किसी को ये काम आ सकें। प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद।

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