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Saturday, March 6, 2010

चिंता के अंग

मनुष्य चिंता करता है तो क्या करता है। मन में कोई विचार जो बार बार उठता है। परन्तु विचार का उठाना चिंता नहीं है। विचार के साथ शारीर में कुछ परिवर्तन होते हैं। जैसेकि- सांस तेज़ चलना, दिल की धड़कन की गति बढ़ जाना, या धड़कन का अनुभव करना, मुह सूखना, पसीना आना, मांस पेशियों का कड़ा होना या फिर हाथ पैर का कम्पन। एक छोटा सा विचार मन में कैसे कैसे परिवर्तन लाता है। ये कैसे हुआ। इस विचार ने शरीर के कुछ होर्मोनों को बढाया जिनकी वजह से ये सारे परिवर्तन आते हैं। अब इस विचार ने हारमोनों को कैसे बढाया, इस मस्तिष्क के बहुत सारे बूझे और अनबूझे रहस्य इसके लिए उत्तरदायी हैं। यदि व्यक्ति प्रयत्न करे तो वह विचार को सिर्फ विचार के रूप में अनुभव करे। शारीरिक परिवर्तनों को शारीरिक परिवर्तनों की तरह। और संवेदना को संवेदना की तरह तो इस तरह से विचार का होर्मोनों से सम्बन्ध टूट जायेगा और फिर देखिये क्या परिणाम मिलते हैं।

परन्तु यह कैसे किया जा सकता है। थोडा प्रयत्न करना होगा। किसी शांत जगह पर आराम से बैठ झएं। आँखे बंद कर लें। अपनी सांस की लय की तरफ ध्यान दें। जो भी विचार मन में उठता है उसको वहीँ रहने दें। शरीर से आने वाले संकेतों को समझें। पेट में गुड-गुड हो या मांसपेशियों में थकान महसूस हो, जहाँ जहाँ आपका शरीर कुर्सी से छू रहा है वहां पर कैसा अनुभव हो रहा है। हवा शरीर से टकराती है तो कैसा लगता है। इन सब चीजों के बारे में गौर फरमाएं। इतना काफी है। जिन्हें और अधिक करना है वो विपस्चना मेडिटेशन सीख सकते हैं। इसके लिए ढेरों वेबसाइट्स हैं जहाँ मेडिटेशन का फ्री ऑडियो उपलब्ध है।

1 comment:

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