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Thursday, August 19, 2010

पोस्चर

मेडिटेशन के लिए कौन सा आसन सर्वाधिक उपयुक्त है ? प्रारंभ में मेडिटेशन के लिए आप कुर्सी का उपयोग कर सकते हैं। या फिर ज़मीं पर दरी बिछाकर पालथी मार कर बैठ सकते हैं। जो भी पोस्चर का उपयोग करें यह ध्यान रहे कि मेडिटेशन मन को केन्द्रित करने की कला है। इसमे शरीर के किसी पोस्चर विशेष का कोई उपयोग नहीं है। शरीर का पोस्चर ऐसा रहे जिससे की आप २० से ३० मिनिटों तक बिना व्यवधान के बैठे रह सकें। किसी प्रकार का दर्द या असुविधा न हो। आपकी सांस का आवागमन सुगमता से हो सके। यदि कोई व्यक्ति बिना सहारे के बैठने में असमर्थ है तो गद्दियों का सहारा लिया जा सकता है। घुटनों या टखनों के नीचे गद्दी लेने में कोई हर्ज नहीं है।

प्रारंभ में बैठकर मेडिटेशन करना ठीक रहेगा। एक बार मेडिटेशन में पारंगत होने पर मेडिटेशन बैठकर, खड़े होकर, लेटकर, या चलते हुए भी किया जा सकता है।
मेडिटेशन की क्रिया में सुस्ती एवं नींद आ सकती है इसलिए जहाँ तक हो सके टिक कर न बैठें। पीठ तनी रहे तो अच्छा है। इससे यदि नींद का झोखा आ जाता है तो आप गिरने लगते हैं और फिर एकाग्र हो सकते हैं।

फोकस

माइंडफुल श्वसन के चौथे खंड में हम एक बिंदु पर मन को केन्द्रित करने की कला सीखते हैं। प्रारंभ में सांस के टकराने का निश्चित बिंदु ढूँढना कठिन हो सकता है। एक बार मन को फोकस किया या सके तो फिर धीरे धीरे यह आसानी से मिलने लगता है। इस खंड में सांस के अन्दर जाते समय सांस सर्वप्रथम जहाँ टकराती है उस जगह का निरीक्षण करना है। उसी स्थान पर सम्पूर्ण श्वसन चक्र में होने वाले सेन्सेशनो को अनुभव करना है। इस खंड में वायु के प्रवाह को भीतर तक जाते हुए महसूस नहीं। करना है। जहाँ तक हो सके श्वसन को अपने आप चलने दें। कोशिश करके उसे गहरा या हल्का या तेज या धीरे नहीं करें। आपको तो बस निरीक्षण करना है। वह भी सिर्फ एक बिंदु का जहाँ अन्दर जाते समय वायु टकराती है।

Wednesday, March 17, 2010

सामाजिक विकलांगता

जब किसी स्तिथि में व्यक्ति तनाव या चिंताग्रस्त होता है तो उसके मन एवं शरीर में हारमोनो की वजह से कुछ परिवर्तन होते हैं। ये परिवर्तन और चिंता सम्बन्धी विचार दोनों मिलकर काफी डरावनी स्तिथि पैदा कर देते हैं। ये दोनों एक दूसरे को बढ़ाने का काम भी करते हैं।

स्वाभाविकतया कोई भी चाहेगा की इस तरह की अनचाही और डरावनी स्थिति न पैदा हो। बस यहीं से परेशानी की शुरुवात हो जाती है। व्यक्ति इस तरह की परिस्थिति एवं विचार का सामना करने की स्थिति न आये ऐसा प्रयत्न करता है। और ये प्रयत्न ही व्यक्ति के जीवन को सीमित कर देते हैं।
आपने भी देखा होगा कि इस तरह से पीड़ित व्यक्ति कैसे कुछ विशेष परिस्थितियों, स्थानों, घटनाओं या व्यक्तियों से बचने के लिए अपने दैनिक जीवन क्रम में परिवर्तन लाते हैं। उनका मुख्य उद्देश्य डर और चिंता से बचना होता है। परन्तु उनसे बचने के लिए वे प्रतिदिन सैंकड़ों ऐसी स्थितियों से बचते हैं जो उनके जीवन के लिए महत्वपूर्ण होती।

सोशल एन्ग्जाएटी से पीड़ित व्यक्ति समूह में रहना या बात करना टालता है। वह पार्टियों में एक कोने में खड़े होकर मोबाइल पर या अन्य किसी कार्य में व्यस्त होने का नाटक कर सकता है। या फिर पार्टियों में जाना ही बंद कर सकता है। सभाओं में बोलना उसके लिए संभव नहीं हो पता। वह बोलने की कोशिश ही नहीं करता।
इन सब कारणों से वह अपना जीवन ही नहीं जी पाता। उसको मिलने वाले मौके सीमित हो जाते हैं। वह समाज से कट जाता है। आत्मीय सम्बन्ध बनाना उसके लिए संभव नहीं हो पाता। थोड़े में इसे हम सामजिक विकलांगता कह सकते है।

Monday, March 15, 2010

उद्दिग्नता के साथी

चिंता के इन सब प्रकारों के आलावा भी कुछ और प्रकार है, जैसे कि obsessive compulsive neurosis और पोस्ट ट्रोमेटिक स्ट्रेस डिसोर्डर। ये भी एन्ग्जाईटी के ही प्रकार हैं।
कुछ विशेष प्रकार कि समस्याएं उद्दिग्नता के साथ साथ बनी रह सकती हैं, जैसे कि अवसाद या शराबखोरी। कभी कभी कुछ शारिरिक बीमारियाँ भी होती हैं जिसमे ऐसे लक्षण मिल सकते हैं। इन बिमारियों का भी सही निदान ज़रूरी है। इन बीमारियों में थायरोइड ग्रंथि के विकार, अस्थमा, ह्रदय रोग इत्यादि शामिल हैं।


अवसाद (depression)

अवसाद एक ऐसी मानसिक अवस्था है जब व्यक्ति हमेशा दुखी रहता है। उसे एक प्रकार का खालीपन रहता है। वह अपने आप के प्रति निराश रहता है। उसे अपने भविष्य से भी कोई आशा नहीं रहती। बहुत से लोग ये संदेह करते हैं कि क्या उनकी दशा कभी सुधर पायेगी। थकावट, उत्साह की कमी, कमज़ोर याददाश्त, निर्णय लेने में कठिनाई, चिडचिडापन और नींद की तकलीफ ये इसके प्रमुख लक्षण हैं। लोग ऐसा महसूस करते हैं कि जीवन आनंददायक नहीं है।

नशे की आदत

उद्दिग्नता से पीड़ित व्यक्ति अपनी उद्दिग्नता कम करने के लिए शराब का सहारा ले सकता है। यह बहुत ही खतरनाक है। क्योंकि शराब का नशा थोड़ी देर तो राहत दिला सकता है। परन्तु नशा उतरते ही फिर उद्दिग्नता बढ़ जाती है। इससे शराब कि आदत लग सकती है। अब दो समस्याएं हो जाती हैं, एक तो उद्दिग्नता और दूसरी शराब की आदत।
इसके अलावा अन्य नशीले पदार्थों का भी सेवन उद्दिग्नता से पीड़ित व्यक्ति कभी कभी करते हैं।

Sunday, March 14, 2010

सामान्य उद्दिग्नता विकार (generalised anxiety diorder)

इस प्रकार के एन्क्जाईटी विकार में लोग अनावश्यक रूप से अनेक घटनाओं और क्रियाओं के बारे में चिंता करते हैं। आमतौर पर लोग यह शिकायत करते हैं कि वे प्रतिदिन के कार्यों से थक गए हैं, प्रतिदिन के कार्य ही उनपर भारी पड़ रहे हैं। चिंता जीवन का स्थायी अंग बन जाता है। और इससे घर और बाहर दोनो के काम प्रभावित होते हैं। नीचे दिए हुए वाक्यांशों में से आप पर भी कुछ लागु होता है क्या:

-चिडचिडाहट
-नींद न आना या टूट जाना
-किसे काम में मन न लग पाना
-थोड़े से काम से थक जाना
-मांसपेशियों में तनाव
-सतत कुछ अनावश्यक कार्य करते रहना restlessness
-यह मालूम होते हुए भी कि चिंता करना व्यर्थ है चिंता करते रहना
-चिंता को काम करने के प्रयत्न के लिए चिंता करना।

सोशल एन्ग्जाईटी (social anxiety)

सोशल फोबिया एक तीव्र दर है जिसमे शर्म और अपमान भी शामिल है। आमतौर पर यह तब होता है जब औरों की उपस्थिति में कोई कार्य करना हो। विशेष रूप से पीड़ित व्यक्ति यह समझता है कि वह कुछ ऐसा न कर बैठे जिससे लोग उसे कमज़ोर, अकर्मण्य, मुर्ख या अयोग्य समझें। उसे यह भी डर लगता है कि लोग उसकी असहजता को समझ रहे हैं। यह आमतौर पर सबसे अधिक होने वाला उद्दिग्नता का प्रकार है।

क्या इसमें से कोई डर है:


लोगों के सामने बोलने में,
लोगों के सामने शर्म से लाल होने में,
पार्टियों में भोजन करते समय पानी गिराने या गले में भोजन अटकने,
जब अन्य लोग मौजूद हों तो कुछ लिखने ,
काम करते समय आपको कोई देख रहा है,
भीड़ में जाने में,
सार्वजानिक गुसलखाने का प्रयोग करने,

तो आप सोशल फोबिया से ग्रस्त हो सकते हैं।

कुछ लोग इसके साथ पेनिक अटेक भी महसूस करते हैं।

अपनी परेशानी काम करने के लिए सोशल फोबिया से पीड़ित व्यक्ति सार्वजनिक समारोहों से जितना संभव हो सके दूर रहता है। समारोहों में बात करना, मीटिंग में शामिल होना, भाषण देना, सामूहिक कार्य, फोन पर बात करना, सार्वजनिक यातायात साधनों का प्रयोग करना उसके लिए कठिन होता है। इन सब कारणों से उसका जीवन बहुत संकुचित हो सकता है।


नरेश की कहानी:

मै बी एड की पढाई कर रहा हूँ। जहाँ तक मुझे याद है मै शुरू से ही सामजिक उद्दिग्नता से पीड़ित था। बचपन में भी मै अकेला ही रहता था। मेरे कोई मित्र नहीं थे। जब मेरे साथ कोई नहीं होता तब भी मुझे ऐसा लगता है कि लोग मेरे बारे में सोच रहे हैं। हर समय जब मै कोई कार्य करता हूँ या कोई बात करता हूँ तो मुझे ऐसा लगता है कि मेरी बात या कार्य ठीक न होगा या लोगों को अच्छा न लगेगा। और मै हंसी का पात्र बन जाऊँगा। बात करना भी बहुत प्रयत्नपूर्वक हो पाता है। इसके लिए भी मुझे लम्बी रेहेर्सल करनी पड़ती है। मै अपने बारे में बहुत निगेटिव सोचता हूँ। अगले हफ्ते से मुझे पढ़ाना है। इसकी कल्पना भी मुझे डरावनी लगती है। पिछले सेमेस्टर में जब मैंने छात्रों को पढाया था तो वह मेरे लिए टॉर्चर के सामान था। मै रोता था। मुझे प्रतिदिन पेनिक अटेक आता था। मै बहुत डर गया था। मै अपने हॉस्टल के साथियों से बात भी नहीं करता था। मेरा खाना खाना भी दूभर हो गया था। बोलने के लिए बहुत बहुत रिहर्सल के बाद भी मेरी जुबान तालू से चिपक जाती थी। मुझे नहीं मालूम कि यह कैसे ठीक हो सकता है। मेरा वजन ५ किलो कम हो गया था।

विशेष डर

विशेष डर (specific phobias):
हर व्यक्ति किसी न किसी बात से डरता है। परन्तु विशेष डर या फोबिया तब कह सकते हैं जब कोई व्यक्ति किसी विशेष स्थान या वस्तु से इतना डरता है कि वह ऐसी वस्तु या स्थान का सामना करने से भी डरता है एवं ऐसी परिस्थितियों को अवोइड करता है। फोबिया से पीड़ित व्यक्ति भी उसी प्रकार से प्रतिक्रिया करता है जैसे कि पेनिक अटेक से पीड़ित व्यक्ति, परन्तु एक अंतर है कि यह प्रतिक्रिया उस वस्तु या स्थान की उपस्थिति में होती है। फोबिया से पीड़ित व्यक्ति उस स्थान या वस्तु से भागने के लिए तत्पर रहता है। परिस्थिति के अनुसार फोबिया जीवन को सीमित कर भी सकते हैं या नहीं भी। उदाहरनार्थ कोई व्यक्ति जो सांपों से डरता है अगर शहर में रहता है अपना सारा जीवन आराम से काट सकता है। जबकि कोई किसान यदि इसी फोबिया से पीड़ित हो तो उसका जीवन दूभर हो सकता है।

पीड़ित व्यक्ति यह जनता है कि उसका डर अनावश्यक है परन्तु फिर भी इससे उसकी प्रतिक्रिया में कोई अंतर नहीं आता। आमतौर पर ज़्यादातर फोबिया जानवरों, ऊंचाई, बंद कमरों, रक्त, चोट लगना, तूफ़ान, बिजली चमकने या हवाई यात्रा से होता है।

फोबिया से पीड़ित अधिकांश लोग कोई इलाज नहीं करवाते। वे केवल डरावनी वस्तु को अवोइड करते हैं। उनके डर का कारण स्पष्ट रूप से ज्ञात होता है।

कविता की कहानी

कविता एक आफिस में क्लर्क है। उसे बंद कमरों का बहुत डर लगता है। वह पांचवे माले पर स्थित अपने आफिस जाने के लिए लिफ्ट का इस्तेमाल नहीं करती। यदि उसे दिन में कई बार आफिस आना जाना पड़े तो वह अवोइड करती है। कभी भी किसी कमरे में अकेली नहीं रहती। कोई न कोई बहाना बना कर वो अपने साथ किसी को बुला लेती है।

Thursday, March 11, 2010

उद्दिग्नता के प्रकार

यदि आप उद्दिग्नता से ग्रस्त हैं तो आपने इसके बारे में काफी कुछ पढ़ा होगा। उद्दिग्नता के प्रकारों के बारे में भी पढ़ा होगा। आपके बीमारी के डाइग्नोसिस से आपका जीवन सुधर नहीं जायेगा। फिर उद्दिग्नता से पीड़ित व्यक्ति किसी विशेष प्रकार की उद्दिग्नता के खांचे में बैठाया जा सके यह आवश्यक नहीं है। सामान्यतया उद्दिग्नता से पीड़ित व्यक्ति किसी डाइग्नोसिस विशेष के खांचे में बैठने की बजाय विभिन्न प्रकार की उद्दिग्नताओं के कहीं बीच में रहता है।
यदि एक बार कोई लेबल लग जाता है तो उसको हटाना मुश्किल रहता है। इसलिए इसका न लगाना ही उचित है। फिर भी हम केवल विवरण की सुविधा के लिए विभिन्न प्रकार के anxiety disorders के बारे में जानना चाहते हैं।

पेनिक अटेक (panic attack)


पनिक अटेक अचानक से डर की अनुभूति होना है। इसके साथ तीव्र शारीरिक संवेदनाये होती हैं जैसे कि उन स्थानों से भागने कीइच्छा होना जहाँ पर ये संवेदनाये होती हैं। साथ ही एक ऐसी मानसिक संभावना की कुछ गंभीर रूप से गलत होने वाला है। दिल की धड़कन का तेज होना, छाती में अकदन या दर्द, साँस फूलना, कंपकपी, पसीना, चक्कर, मितली या उलटी, हाथ पैर का सुन्न या ठंडा पद जाना, या फिर हाथ पैरों या चेहरे पर गर्मी महसूस करना, ये कुछ अनुभव हैं जो पेनिक अटेक के वक्त हो सकते हैं। पागल होने का डर या कुछ असंयमित बर्ताव कर देने का डर भी हो सकता है।


राजेश की कहानी
"जब मै एक नौकरी के इंटरव्यू के लिए जा रहा था तब मुझे ऐसा लगा की मेरा सर घूम रहा है, दिल इतनी जोर से धड़क रहा था मानो छाती फटी पड़ती हो। मेरा सर ऐसा लग रहा था की एक गुब्बारा है और किसी भी क्षण फट सकता है। मेरे हाथ कांप रहे थे और हथेलियाँ गीली थीं। मेरी उँगलियाँ सुन्न लग रही थी। मेरी छाती में इतने तेज़ दर्द हो रहा था मानो मुझे दिल का दौरा पड़ गया हो। समय के साथ चक्कर बढ़ते गए। मैंने अपनी साँस थामने की बहुत कोशिश की पर मै उसमे असफल रहा। मैंने इंटरव्यू देने की कोशिश की पर मुझे कुछ समझ में नहीं आया। "

पेनिक अटेक पेनिक बीमारी में कैसे बदलता है:



बिना किसी कारन के यदि बार बार पेनिक अटेक आते हैं तो ये हो सकता है की आप पेनिक बीमारी से ग्रस्त हों। परन्तु पेनिक अटेक आना यह कोई बीमारी नहीं है। बहुत से लोगों में साल में एकाध बार पेनिक अटेक आते हैं। पेनिक डिसोर्डर का तात्पर्य है कि यदि व्यक्ति अगले अटेक के आने की संभावना से ऐसी व्यक्तियों, एवं स्थानों को टाला जा सके जहाँ पेनिक अटेक आने की सम्भावना रहती है।

सुनीता की कहानी:

मुझे हमेशा घर से बाहर निकलने में डर लगता हैमै इतना डरी हुई रहती हूँ की हमेशा यह ध्यान रखती हूँ की कोई भागने का रास्ता है या नहींमंदिर, बाज़ार या अन्य कोई ज़गह मै अकेले जाना पसंद करती हूँ, जिससे की यदि कोई पेनिक अटेक आये तो मेरे साथ मै जो है उसे मालूम पड़े और मै वहां से भाग कर घर सकूँया फिर मै किसी ऐसे सुरक्षित व्यक्ति के साथ ही बाहर निकलना पसंद करती हूँबाहर जाने पर मेरा पेट गड़बड़ हो जाता हैबाहर जाते समय मै अपने पेट के गड़बड़ होने की वजह से सिर्फ ऐसी जगह जाती हूँ जहाँ पर toilet हो








Wednesday, March 10, 2010

मन का फंदा

हर मनुष्य अपने विचारों में डूबा रहता है। कभी ऐसा भी होता है कि विचारों को ही मनुष्य यथार्थ समझ लेता है। विचार जिस घटना के बारे में हों यह आवश्यक नहीं कि वह घटना वर्तमान से कुछ सम्बन्ध रखती हो। यह भी होता है कि घटना केवल कल्पना की उडान ही हो। ऐसी स्थिति में जब मनुष्य उस घटना पर प्रतिक्रिया स्वरुप भावावेग से ग्रस्त हो जाता है। यह विचारों और भावनाओं का कन्फ्यूजन है। जब व्यक्ति शब्दों को उनके अर्थ से अधिक महत्त्व देता है तो इसका मतलब है कि वह शब्दों के मायाजाल में उलझ रहा है। शब्द और उसके फलस्वरूप होने वाली शारीरिक प्रतिक्रियाएं अलग अलग हैं। कल्पना करें कि एक विचार है कि 'आपकी कार का एक्सिडेंट हो गया है'। तुरंत ही मन अपनी प्रतिक्रिया चालू कर देगा। डर के बारे में पसीना निकल सकता है। धड़कन तेज़ हो सकती है या सांस फूल सकती है। परन्तु एक्सिडेंट तो एक कल्पना है। आपके मन ने उसे वास्तविक मान कर प्रतिक्रिया कर दी। विचार को विचार ही रहने दिया जाये और घटना को घटना तभी सही कार्य हो सकेंगे।

यहाँ पर मन विचारों को तथ्यों से ज्यादा महत्व दे रहा है। इसकी वजह से आप किंकर्तव्यमूढ़ हो सकते हैं।

कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति मानसिक छवि को छवि, विचार को विचार, संवेदनाओं को संवेदना ही रहने दे। न उससे कुछ कम न अधिक। मन हमेशा ही आपका सच्चा मित्र नहीं रहता है। विशेष रूप से जब मन बेलगाम घोड़े कि तरह छवि, विचार और संवेदना को एक दूसरे में गड्ड मड्ड कर देता है। और व्यक्ति इस चक्रव्यूह से बाहर नहीं निकल पाता।

तो क्या चिंता वास्तविक नहीं है। विचार वास्तविक हो, आपके शरीर में होने वाले परिवर्तन जैसे कि हाथ पैर कंपना, धडकन, या पसीना भी वास्तविक हैं। परन्तु उनका अनुभव अलग अलग करना होगा। विचार को विचार रहने दें, शारीरिक परिवर्तनों को शारीरिक परिवर्तन, दोनों का आपस में यदि कंफ्यूजन न किया जाये तो समस्या नहीं होगी।

Saturday, March 6, 2010

चिंता के अंग

मनुष्य चिंता करता है तो क्या करता है। मन में कोई विचार जो बार बार उठता है। परन्तु विचार का उठाना चिंता नहीं है। विचार के साथ शारीर में कुछ परिवर्तन होते हैं। जैसेकि- सांस तेज़ चलना, दिल की धड़कन की गति बढ़ जाना, या धड़कन का अनुभव करना, मुह सूखना, पसीना आना, मांस पेशियों का कड़ा होना या फिर हाथ पैर का कम्पन। एक छोटा सा विचार मन में कैसे कैसे परिवर्तन लाता है। ये कैसे हुआ। इस विचार ने शरीर के कुछ होर्मोनों को बढाया जिनकी वजह से ये सारे परिवर्तन आते हैं। अब इस विचार ने हारमोनों को कैसे बढाया, इस मस्तिष्क के बहुत सारे बूझे और अनबूझे रहस्य इसके लिए उत्तरदायी हैं। यदि व्यक्ति प्रयत्न करे तो वह विचार को सिर्फ विचार के रूप में अनुभव करे। शारीरिक परिवर्तनों को शारीरिक परिवर्तनों की तरह। और संवेदना को संवेदना की तरह तो इस तरह से विचार का होर्मोनों से सम्बन्ध टूट जायेगा और फिर देखिये क्या परिणाम मिलते हैं।

परन्तु यह कैसे किया जा सकता है। थोडा प्रयत्न करना होगा। किसी शांत जगह पर आराम से बैठ झएं। आँखे बंद कर लें। अपनी सांस की लय की तरफ ध्यान दें। जो भी विचार मन में उठता है उसको वहीँ रहने दें। शरीर से आने वाले संकेतों को समझें। पेट में गुड-गुड हो या मांसपेशियों में थकान महसूस हो, जहाँ जहाँ आपका शरीर कुर्सी से छू रहा है वहां पर कैसा अनुभव हो रहा है। हवा शरीर से टकराती है तो कैसा लगता है। इन सब चीजों के बारे में गौर फरमाएं। इतना काफी है। जिन्हें और अधिक करना है वो विपस्चना मेडिटेशन सीख सकते हैं। इसके लिए ढेरों वेबसाइट्स हैं जहाँ मेडिटेशन का फ्री ऑडियो उपलब्ध है।

Friday, March 5, 2010

डर और उद्दिग्नता

The truth is that our finest moments are most likely to occur when we are feeling deeply uncomfortable, unhappy or unfulfilled. For it is only in such moments propelled by our discomfort, that we are likely to step out of our ruts and start searching for truer answers.--M.Scot Peck.


कभी आपको ऐसा लग सकता है की आप बहुत अकेले हैं। मेरी उद्दिग्नता बहुत अधिक है और मुझे कोई समझने वाला नहीं है।
मई आपको बता दूँ कि ऐसा सोचने वाले आप अकेले नहीं है। सामान्य चिंता विकार से ग्रस्त व्यक्तियों की संख्या बहुत अधिक है। वे हर शहर, प्रदेश और देश में रहते हैं। वे सभी जातियों में पाए जाते हैं। वे गरीब या आमिर किसी को भी हो सकते हैं।

दर और उद्दिग्नता में अंतर
डर एक त्वरा प्रतिक्रिया है जो जीवन बनाये रखने के लिए बहुत आवश्यक है।जब हमारा जीवन या सुरक्षा खतरे में रहते हैं। ये हमें सुरक्षात्मक कदम उठाने के लिए सहायता करती है। जब यह भावना उदित होती है तब बहुत सारी क्रियाएं शरीर में होती हैं। धड़कन बढ़ जाती है। सांस फूल सकती है। ब्लड प्रेसर बढ़ सकता है। गर्मी का अनुभव होता है। पेट में गड़बड़ महसूस हो सकती है चक्कर और पसीना आ सकता है।
ये सभी प्रतिक्रियाये आपको अतिरिक्त उर्ज्या प्रदान करती हैं। यह हार्मोन एड्रीनलीन के कारण होने वाले परिवर्तन हैं। यह व्यक्ति के लड़ने या भागने की पुर्वतैयारी है।
डर से आप अपने आस पास की वस्तुओं के प्रति अधिक सजग हो जाते हैं। इसके कारण आप डर के कारण की तरफ पैनी नज़र रख सकते हैं। यह आपको विपरीत परिस्थितियों में त्वरित कार्य करने के लिए मदद करता है।

इसके विपरीत उद्दिग्नता इक ऐसी स्थिति है जो भविष्य में होने वाली किसी घटना के लिए होती है। इसमे चिंता मांसपेशियों में तनाव और वे सभी परिवर्तन होते हैं जो डर में होते है। परन्तु ये परिवर्तन उतने तीव्र नहीं होते जितने कि एन्ग्ज़ाइटी में होते हैं। परन्तु ये काफी लम्बे समय तक चल सकते हैं। कम या अधिक मात्रामें दिनों हफ़्तों, या महीनो- सालों चल सकते हैं। उद्दिग्नता का स्त्रोत मन है न कि खतरे का वास्तविक रूप से होना।

कुछ अलग परिणाम पाने के लिए

" क्या चिंता ने अन्दर ही अन्दर आपको उससे लड़ने के लिए तैयार किया या फिर भागने के लिए, परन्तु विचार से लड़ कर या भागकर आप कहाँ जायेंगे, वो तो हमेशा आपके साथ ही रहेगा।
क्या कुछ मानसिक चित्र, कुछ विचार इतने प्रभावशाली हो सकते हैं किजीवन दूभर कर दें। हाँ ऐसा है, परन्तु इसलिए नहीं कि ये विचार इतने ताकतवर हैं। वरना इसलिए कि हम खुद उन विचारों को ताकत देते हैं। उनसे लड़कर

"जीवन एक पवित्र यात्रा है। यह यात्रा है परिवर्तन की, विकास की, खोज, गति, रूपांतरण, दृष्टिकोण केपरिवर्तन की, स्पष्ट और भेदक दृष्टि को सीखने की, अपनी आत्मा की आवाज़ पहचानकर ताकतवर कदमो से उसरास्ते पर चलने की जहाँ हर पग पर संघर्ष है। आप उस राह पर वहीँ पर खड़े हैं जहाँ आपको होना चाहिए और यहाँसे सिर्फ आप आगे जा सकते हैं, अपने जीवन को आकृति देने, और इस जीवन की कहानी को विजय, वीरता, विवेक, शक्ति, प्रेम और आत्मबल की महागाथा का निर्माण करने।"-- केरोलिन अडम्स।
कुछ अलग परिणाम प्राप्त करने हों तो कुछ अलग करना होता है। "
यदि आप वही करते रहे जो हमेशा करते हैं तो वही परिणाम मिलेंगे जो आपको हमेशा मिलेथे"- जेम्स हैज़
विकल्प क्या है
एक अच्छी बात यह है कि विकल्प हैं। चिंता और
डर से लड़ने कि बजाय क्यों हम उससे समझौता करलें। हम उसे अच्छे से समझें। उस चिंता के क्या अंग हैं, कुछ विशेष विचार, और इन विचारों की वजह से शरीरके विभिन्न अंगोमें होने वाले परिवर्तन। ये परिवर्तन क्या हैं। ह्रदय की गति बढ़ जाना, धड़कन, पसीना, सांस फूलना, हाथ कांपना, मन में एक तूफान खड़ा हो जाना। अरे ये सभी तो एड्रीनलीन हारमोन के कारण होने वाले परिवर्तन हैं। तो

Thursday, March 4, 2010

चिंता: उपचार के नए रास्ते

चिंता से एक नए प्रकार का रिश्ता कायम करना आवश्यक है। कुछ विचार, यादें और परिस्थितियां चिंता उत्पन्न कर सकती हैं। ये जो चिंता के ट्रिगर हैं उसका कारण व्यक्ति के जीवन के वो भावनात्मक घाव है जो अभी तक भरे नहीं हैं. उनको स्वीकार करके ही चिंतामुक्त हुआ जा सकता है। यदि उन घावों को बार बार दबाया जाये और व्यक्ति अपने आप को उन मानवीय भूलों के लिए माफ़ न करे तो वे घाव चिंताविकारों के रूप में उदित हो जाते हैं। कोई भी यह नहीं चाहेगा की वह चिंताविकारों से ग्रस्त रहे। परन्तु जबतक सामान्य चिंता विकारों(जी डी) को दबाने की कोशिश की जाती रहेगी या फिर अन्य नकारात्मक तरीकों का प्रयोग किया जायेगा जैसे कि पलायन, छुपाना, संघर्ष या दबाव सुधार नहीं होगा।

सामान्य चिंता विकार:

चिंताविकारों के इलाज के लिए संज्ञान व्यावहार उपचार पद्धति बहुत प्रचलित है.
चिंताग्रस्त व्यक्तियों क यह सिखाया जाता है किअपने विचारों को किस प्रकार से बदलना है। घातक ऋणात्मक विचारों बारे में यह विचार करना कि वे अवास्तविक हैं और स्थान पर वास्तविक एवं धनात्मक विचार करना
एक और पद्धति है जिसमे चिंताविकार व्यक्ति को बार बार उन्ही परिस्थितियों में ले जाया जाये जब ये विचार उत्पन्न होते हैं। बार बार उन्ही अनुभवों से गुजरने के बाद व्यक्ति यह समझ जाता है कि ये विचार काल्पनिक हैं।

प्रायः चिंता के लिए कुछ ट्रिगर होते हैं। ये व्यक्ति के मन में उठने वाले कुछ विचार, स्वयम के शरीर से आने वाले कुछ संवेदनाएं हो सकती हैं या फिर वातावरण में मौजूद किसी भी कारण के प्रति व्यक्ति अधिक सूक्ष्म ग्राही हो सकता है।
बार बार इनके अनुभवों से गुजरने के बाद व्यक्ति डर से मुक्ति पा सकता है।
परन्तु ऐसा देखा गया है कि यह वास्तव हैं में उतना प्रभावकारी नहीं है। इस विधि से उपचार के बाद भी समस्या बनी रह सकती है या फिर कुछ समय बाद फिर उत्पन्न हो जाती है।

डर चिंता आशंका घबराहट या व्यग्रता: सामान्य चिंता विकार

मै यह सोच रहा था कि anxiety neurosis के लिए हिंदी में सबसे उपयुक्त शब्द क्या होगा। अंग्रेजी में anxiety शब्द का समानार्थी शब्द हिंदी में व्यग्रता या आतुरता हो सकता है पर शब्दों के फेर में पड़े हिस्सा हम यह जान लें कि चिंता जीवन का एक अंग है यहाँ चिंता शब्द पर जोर दिया जा रहा है क्योंकि यह सम्पूर्ण जीवन नहीं है जीवन का एक छोटा सा हिस्सा, मात्र है एक मनोविकारों का समूह जिसमे चिंता या आशंका अत्यधिक रूप से बढ़कर बीमारी का रूप धारण कर लेती है। कुछ लोग इन बीमारियों से गंभीर रूप से पीड़ित रहते हैं। अनियंत्रित विचार और घबराहट जीवन को नरक बना देता है, वे निराश कुंठित या फिर टूट चुके हो सकते हैं। जो लोग इससे पीड़ित हैं उन्हें शायद यह जानकार अच्छा लगे कि वे अकेले नहीं है। दुनिया में सभी लोग चिंता या डर का अनुभव करते हैं।

बहुतेरे लोग अपना जीवन इन सभी आशंकाओं के बावजूद सहज ढंग से जी लेते हैं। अन्दर ही अन्दर वे अपने आप को इस चिंता से मुक्त कर लेते हैं। थोड़े में वे व्यग्रता को अपनी राह का रोड़ा नहीं बनने देते। आशंका जीवन को दुरूह बनाए आवश्यक नहीं है। एक रास्ता है। एक ऐसी कुशलता जो आपकी शक्ति जीवन कि उन दिशाओं में समृद्ध करे जो आपके लिए मूल्यवान हैं। यह एक ऐसा रास्ता है जो आपको यह बताता है कि चिंता और डर आपके जीवन का एक हिस्सा मात्र है। सम्पूर्ण जीवन नहीं है।

चिंता ने जिनके जीवन को अनावश्यक रूप से प्रभावित किया है वे लोग कुछ कार्य अपनी चिंता दूर करने के लिए करते हैं। उदाहरनार्थ:

*उन स्थितियों से दूर रहना जहाँ चिंता या व्यग्रता घेर लेती है।
*ऐसे कार्यों एवं गतिविधियों को न करना जहन चिंता व्यग्रता पुरानी यादें या अनुभव ताज़ा हो जाएँ। जैसे कि बाहर जाना, कार चलाना, भीड़ में जाना, नयी जगह पर जाना, कुछ विशेष प्रकार का भोजन, सभा या पार्टियों में जाना आदि।
*उन विचारों को दबाना जो परेशान करते हैं।
*चिंता उत्पन्न करने वाले विचारों के स्थान पर अच्छे विचारों की और ध्यान लगाना।
*चिंता होने पर अपना ध्यान किसी अन्य कार्य कि तरफ मोड़ देना।
*अपनी घबराहट कम करने के लिए बातचीत का सहारा लेना।
*पुस्तक पढ़कर व्यग्रता या चिंता के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करना।
*शराब या अन्य नशीली वास्तु का सेवन करके अपनी व्यग्रता को छुपाना।
*औषधियों का सेवन।
*मनोवैज्ञानिक से सहायता लेना।
उपरोक्त क्रियाओं कि वजह से व्यक्ति थोड़े समय के लिए चिंता से तो मुक्त हो जाता है। परन्तु वह एक महत्वपूर्ण वस्तु खोता है। चाहे वह उसका करियर हो या प्यार, या फिर सामाजिक सम्बन्ध, अच्छा स्वास्थ्य, या फिर उसकी स्वयं कि स्वतंत्रता।
डर और चिंता तीव्र गतिशील भावनाएं हैं। जिन्हें नियंत्रित करना कठिन है, और उनके साथ जीना और भी कठिन है। सच तो ये है कि चिंता हमेशा के लिए कभी भी समाप्त नहीं होती। तीव्र डर कि भावना, दुखी करने वाले विचार और ख़राब स्मृतियाँ हो सकता है कभी कम न हो। फिर क्या किया जाये। किया केवल येही जा सकता है कि इन सब विचारों के रहते हुए भी आप वो काम कर सकें जो आपके लिए महत्वपूर्ण हैं, जो आप करना चाहते हैं पर चिंता कि वजह से नहीं कर पाते। आप अपनी पीड़ा कम कर सकते हैं। अपना जीवन फिर से प्राप्त कर सकते हैं।