आज एक मैनेजमेंट गुरु से मुलाक़ात हुई। उनका कहना था कि आज ही है जो है। कल एक इतिहास है और आने वाला कल तो कल्पना ही है। जो भी करना है आज ही करें। मै भी येही सोच रहा था। पर क्या यह सच है। यदि इतिहास न रहे तो मै क्या हूँ आख़िर इतिहास ही है जो मै हूँ वरना मेरी क्या सोच क्या विचार। मेरी इतने वर्षों की स्मृतियाँ ही आख़िर मेरा व्यक्तित्व बनाती हैं। जब ये ही न रहेंगी तो मै एक समय के साथ बहता जर्रा बन जाऊँगा जिसकी अपनी कोई शख्सियत नही। एक अस्तित्वहीन, आकृतिविहीन भावनाविहीन शून्य।
परन्तु यदि बीता हुआ कल नही है तो मेरा कोई कर्तव्य भी नही है। एक अंतहीन आकाश जिसमे पंछी की तरह विचरण करता मै "न शहर न ठिकाना मुझे चलते जाना है।" आने वाले कल के सपने ही आज के कार्यों का कारण हैं। बीते हुए कल की घटनाएं मेरे मन में ऐसा इतिहास बनाए हुए हैं कि मै चाह कर भी उनसे पीछा नही छुड़ा सकता। क्यों कि वे ही मै हूँ। हाँ मै यह मानता हूँ कि हमें आगे बढ़ते जाना है।