मेडिटेशन के लिए कौन सा आसन सर्वाधिक उपयुक्त है ? प्रारंभ में मेडिटेशन के लिए आप कुर्सी का उपयोग कर सकते हैं। या फिर ज़मीं पर दरी बिछाकर पालथी मार कर बैठ सकते हैं। जो भी पोस्चर का उपयोग करें यह ध्यान रहे कि मेडिटेशन मन को केन्द्रित करने की कला है। इसमे शरीर के किसी पोस्चर विशेष का कोई उपयोग नहीं है। शरीर का पोस्चर ऐसा रहे जिससे की आप २० से ३० मिनिटों तक बिना व्यवधान के बैठे रह सकें। किसी प्रकार का दर्द या असुविधा न हो। आपकी सांस का आवागमन सुगमता से हो सके। यदि कोई व्यक्ति बिना सहारे के बैठने में असमर्थ है तो गद्दियों का सहारा लिया जा सकता है। घुटनों या टखनों के नीचे गद्दी लेने में कोई हर्ज नहीं है।
प्रारंभ में बैठकर मेडिटेशन करना ठीक रहेगा। एक बार मेडिटेशन में पारंगत होने पर मेडिटेशन बैठकर, खड़े होकर, लेटकर, या चलते हुए भी किया जा सकता है।
मेडिटेशन की क्रिया में सुस्ती एवं नींद आ सकती है इसलिए जहाँ तक हो सके टिक कर न बैठें। पीठ तनी रहे तो अच्छा है। इससे यदि नींद का झोखा आ जाता है तो आप गिरने लगते हैं और फिर एकाग्र हो सकते हैं।
मेरी चिंता
यह ब्लॉग एवं उसके पोस्ट जनता की संपत्ति हैं। इसपर ब्लॉग स्वामी का कोई अधिकार नहीं है। जो चाहे जब चाहे कोई भी पोस्ट या उसके किसी भाग का जैसा चाहे उपयोग कर सकता है। 'बहुजन हिताय- बहुजन सुखाय'
Thursday, August 19, 2010
फोकस
माइंडफुल श्वसन के चौथे खंड में हम एक बिंदु पर मन को केन्द्रित करने की कला सीखते हैं। प्रारंभ में सांस के टकराने का निश्चित बिंदु ढूँढना कठिन हो सकता है। एक बार मन को फोकस किया या सके तो फिर धीरे धीरे यह आसानी से मिलने लगता है। इस खंड में सांस के अन्दर जाते समय सांस सर्वप्रथम जहाँ टकराती है उस जगह का निरीक्षण करना है। उसी स्थान पर सम्पूर्ण श्वसन चक्र में होने वाले सेन्सेशनो को अनुभव करना है। इस खंड में वायु के प्रवाह को भीतर तक जाते हुए महसूस नहीं। करना है। जहाँ तक हो सके श्वसन को अपने आप चलने दें। कोशिश करके उसे गहरा या हल्का या तेज या धीरे नहीं करें। आपको तो बस निरीक्षण करना है। वह भी सिर्फ एक बिंदु का जहाँ अन्दर जाते समय वायु टकराती है।
Wednesday, March 17, 2010
सामाजिक विकलांगता
जब किसी स्तिथि में व्यक्ति तनाव या चिंताग्रस्त होता है तो उसके मन एवं शरीर में हारमोनो की वजह से कुछ परिवर्तन होते हैं। ये परिवर्तन और चिंता सम्बन्धी विचार दोनों मिलकर काफी डरावनी स्तिथि पैदा कर देते हैं। ये दोनों एक दूसरे को बढ़ाने का काम भी करते हैं।
स्वाभाविकतया कोई भी चाहेगा की इस तरह की अनचाही और डरावनी स्थिति न पैदा हो। बस यहीं से परेशानी की शुरुवात हो जाती है। व्यक्ति इस तरह की परिस्थिति एवं विचार का सामना करने की स्थिति न आये ऐसा प्रयत्न करता है। और ये प्रयत्न ही व्यक्ति के जीवन को सीमित कर देते हैं।
आपने भी देखा होगा कि इस तरह से पीड़ित व्यक्ति कैसे कुछ विशेष परिस्थितियों, स्थानों, घटनाओं या व्यक्तियों से बचने के लिए अपने दैनिक जीवन क्रम में परिवर्तन लाते हैं। उनका मुख्य उद्देश्य डर और चिंता से बचना होता है। परन्तु उनसे बचने के लिए वे प्रतिदिन सैंकड़ों ऐसी स्थितियों से बचते हैं जो उनके जीवन के लिए महत्वपूर्ण होती।
सोशल एन्ग्जाएटी से पीड़ित व्यक्ति समूह में रहना या बात करना टालता है। वह पार्टियों में एक कोने में खड़े होकर मोबाइल पर या अन्य किसी कार्य में व्यस्त होने का नाटक कर सकता है। या फिर पार्टियों में जाना ही बंद कर सकता है। सभाओं में बोलना उसके लिए संभव नहीं हो पता। वह बोलने की कोशिश ही नहीं करता।
इन सब कारणों से वह अपना जीवन ही नहीं जी पाता। उसको मिलने वाले मौके सीमित हो जाते हैं। वह समाज से कट जाता है। आत्मीय सम्बन्ध बनाना उसके लिए संभव नहीं हो पाता। थोड़े में इसे हम सामजिक विकलांगता कह सकते है।
स्वाभाविकतया कोई भी चाहेगा की इस तरह की अनचाही और डरावनी स्थिति न पैदा हो। बस यहीं से परेशानी की शुरुवात हो जाती है। व्यक्ति इस तरह की परिस्थिति एवं विचार का सामना करने की स्थिति न आये ऐसा प्रयत्न करता है। और ये प्रयत्न ही व्यक्ति के जीवन को सीमित कर देते हैं।
आपने भी देखा होगा कि इस तरह से पीड़ित व्यक्ति कैसे कुछ विशेष परिस्थितियों, स्थानों, घटनाओं या व्यक्तियों से बचने के लिए अपने दैनिक जीवन क्रम में परिवर्तन लाते हैं। उनका मुख्य उद्देश्य डर और चिंता से बचना होता है। परन्तु उनसे बचने के लिए वे प्रतिदिन सैंकड़ों ऐसी स्थितियों से बचते हैं जो उनके जीवन के लिए महत्वपूर्ण होती।
सोशल एन्ग्जाएटी से पीड़ित व्यक्ति समूह में रहना या बात करना टालता है। वह पार्टियों में एक कोने में खड़े होकर मोबाइल पर या अन्य किसी कार्य में व्यस्त होने का नाटक कर सकता है। या फिर पार्टियों में जाना ही बंद कर सकता है। सभाओं में बोलना उसके लिए संभव नहीं हो पता। वह बोलने की कोशिश ही नहीं करता।
इन सब कारणों से वह अपना जीवन ही नहीं जी पाता। उसको मिलने वाले मौके सीमित हो जाते हैं। वह समाज से कट जाता है। आत्मीय सम्बन्ध बनाना उसके लिए संभव नहीं हो पाता। थोड़े में इसे हम सामजिक विकलांगता कह सकते है।
Monday, March 15, 2010
उद्दिग्नता के साथी
चिंता के इन सब प्रकारों के आलावा भी कुछ और प्रकार है, जैसे कि obsessive compulsive neurosis और पोस्ट ट्रोमेटिक स्ट्रेस डिसोर्डर। ये भी एन्ग्जाईटी के ही प्रकार हैं।
कुछ विशेष प्रकार कि समस्याएं उद्दिग्नता के साथ साथ बनी रह सकती हैं, जैसे कि अवसाद या शराबखोरी। कभी कभी कुछ शारिरिक बीमारियाँ भी होती हैं जिसमे ऐसे लक्षण मिल सकते हैं। इन बिमारियों का भी सही निदान ज़रूरी है। इन बीमारियों में थायरोइड ग्रंथि के विकार, अस्थमा, ह्रदय रोग इत्यादि शामिल हैं।
अवसाद (depression)
अवसाद एक ऐसी मानसिक अवस्था है जब व्यक्ति हमेशा दुखी रहता है। उसे एक प्रकार का खालीपन रहता है। वह अपने आप के प्रति निराश रहता है। उसे अपने भविष्य से भी कोई आशा नहीं रहती। बहुत से लोग ये संदेह करते हैं कि क्या उनकी दशा कभी सुधर पायेगी। थकावट, उत्साह की कमी, कमज़ोर याददाश्त, निर्णय लेने में कठिनाई, चिडचिडापन और नींद की तकलीफ ये इसके प्रमुख लक्षण हैं। लोग ऐसा महसूस करते हैं कि जीवन आनंददायक नहीं है।
नशे की आदत
उद्दिग्नता से पीड़ित व्यक्ति अपनी उद्दिग्नता कम करने के लिए शराब का सहारा ले सकता है। यह बहुत ही खतरनाक है। क्योंकि शराब का नशा थोड़ी देर तो राहत दिला सकता है। परन्तु नशा उतरते ही फिर उद्दिग्नता बढ़ जाती है। इससे शराब कि आदत लग सकती है। अब दो समस्याएं हो जाती हैं, एक तो उद्दिग्नता और दूसरी शराब की आदत।
इसके अलावा अन्य नशीले पदार्थों का भी सेवन उद्दिग्नता से पीड़ित व्यक्ति कभी कभी करते हैं।
कुछ विशेष प्रकार कि समस्याएं उद्दिग्नता के साथ साथ बनी रह सकती हैं, जैसे कि अवसाद या शराबखोरी। कभी कभी कुछ शारिरिक बीमारियाँ भी होती हैं जिसमे ऐसे लक्षण मिल सकते हैं। इन बिमारियों का भी सही निदान ज़रूरी है। इन बीमारियों में थायरोइड ग्रंथि के विकार, अस्थमा, ह्रदय रोग इत्यादि शामिल हैं।
अवसाद (depression)
अवसाद एक ऐसी मानसिक अवस्था है जब व्यक्ति हमेशा दुखी रहता है। उसे एक प्रकार का खालीपन रहता है। वह अपने आप के प्रति निराश रहता है। उसे अपने भविष्य से भी कोई आशा नहीं रहती। बहुत से लोग ये संदेह करते हैं कि क्या उनकी दशा कभी सुधर पायेगी। थकावट, उत्साह की कमी, कमज़ोर याददाश्त, निर्णय लेने में कठिनाई, चिडचिडापन और नींद की तकलीफ ये इसके प्रमुख लक्षण हैं। लोग ऐसा महसूस करते हैं कि जीवन आनंददायक नहीं है।
नशे की आदत
उद्दिग्नता से पीड़ित व्यक्ति अपनी उद्दिग्नता कम करने के लिए शराब का सहारा ले सकता है। यह बहुत ही खतरनाक है। क्योंकि शराब का नशा थोड़ी देर तो राहत दिला सकता है। परन्तु नशा उतरते ही फिर उद्दिग्नता बढ़ जाती है। इससे शराब कि आदत लग सकती है। अब दो समस्याएं हो जाती हैं, एक तो उद्दिग्नता और दूसरी शराब की आदत।
इसके अलावा अन्य नशीले पदार्थों का भी सेवन उद्दिग्नता से पीड़ित व्यक्ति कभी कभी करते हैं।
Sunday, March 14, 2010
सामान्य उद्दिग्नता विकार (generalised anxiety diorder)
इस प्रकार के एन्क्जाईटी विकार में लोग अनावश्यक रूप से अनेक घटनाओं और क्रियाओं के बारे में चिंता करते हैं। आमतौर पर लोग यह शिकायत करते हैं कि वे प्रतिदिन के कार्यों से थक गए हैं, प्रतिदिन के कार्य ही उनपर भारी पड़ रहे हैं। चिंता जीवन का स्थायी अंग बन जाता है। और इससे घर और बाहर दोनो के काम प्रभावित होते हैं। नीचे दिए हुए वाक्यांशों में से आप पर भी कुछ लागु होता है क्या:
-चिडचिडाहट
-नींद न आना या टूट जाना
-किसे काम में मन न लग पाना
-थोड़े से काम से थक जाना
-मांसपेशियों में तनाव
-सतत कुछ अनावश्यक कार्य करते रहना restlessness
-यह मालूम होते हुए भी कि चिंता करना व्यर्थ है चिंता करते रहना
-चिंता को काम करने के प्रयत्न के लिए चिंता करना।
-चिडचिडाहट
-नींद न आना या टूट जाना
-किसे काम में मन न लग पाना
-थोड़े से काम से थक जाना
-मांसपेशियों में तनाव
-सतत कुछ अनावश्यक कार्य करते रहना restlessness
-यह मालूम होते हुए भी कि चिंता करना व्यर्थ है चिंता करते रहना
-चिंता को काम करने के प्रयत्न के लिए चिंता करना।
सोशल एन्ग्जाईटी (social anxiety)
सोशल फोबिया एक तीव्र दर है जिसमे शर्म और अपमान भी शामिल है। आमतौर पर यह तब होता है जब औरों की उपस्थिति में कोई कार्य करना हो। विशेष रूप से पीड़ित व्यक्ति यह समझता है कि वह कुछ ऐसा न कर बैठे जिससे लोग उसे कमज़ोर, अकर्मण्य, मुर्ख या अयोग्य समझें। उसे यह भी डर लगता है कि लोग उसकी असहजता को समझ रहे हैं। यह आमतौर पर सबसे अधिक होने वाला उद्दिग्नता का प्रकार है।
क्या इसमें से कोई डर है:
लोगों के सामने बोलने में,
लोगों के सामने शर्म से लाल होने में,
पार्टियों में भोजन करते समय पानी गिराने या गले में भोजन अटकने,
जब अन्य लोग मौजूद हों तो कुछ लिखने ,
काम करते समय आपको कोई देख रहा है,
भीड़ में जाने में,
सार्वजानिक गुसलखाने का प्रयोग करने,
तो आप सोशल फोबिया से ग्रस्त हो सकते हैं।
कुछ लोग इसके साथ पेनिक अटेक भी महसूस करते हैं।
अपनी परेशानी काम करने के लिए सोशल फोबिया से पीड़ित व्यक्ति सार्वजनिक समारोहों से जितना संभव हो सके दूर रहता है। समारोहों में बात करना, मीटिंग में शामिल होना, भाषण देना, सामूहिक कार्य, फोन पर बात करना, सार्वजनिक यातायात साधनों का प्रयोग करना उसके लिए कठिन होता है। इन सब कारणों से उसका जीवन बहुत संकुचित हो सकता है।
नरेश की कहानी:
मै बी एड की पढाई कर रहा हूँ। जहाँ तक मुझे याद है मै शुरू से ही सामजिक उद्दिग्नता से पीड़ित था। बचपन में भी मै अकेला ही रहता था। मेरे कोई मित्र नहीं थे। जब मेरे साथ कोई नहीं होता तब भी मुझे ऐसा लगता है कि लोग मेरे बारे में सोच रहे हैं। हर समय जब मै कोई कार्य करता हूँ या कोई बात करता हूँ तो मुझे ऐसा लगता है कि मेरी बात या कार्य ठीक न होगा या लोगों को अच्छा न लगेगा। और मै हंसी का पात्र बन जाऊँगा। बात करना भी बहुत प्रयत्नपूर्वक हो पाता है। इसके लिए भी मुझे लम्बी रेहेर्सल करनी पड़ती है। मै अपने बारे में बहुत निगेटिव सोचता हूँ। अगले हफ्ते से मुझे पढ़ाना है। इसकी कल्पना भी मुझे डरावनी लगती है। पिछले सेमेस्टर में जब मैंने छात्रों को पढाया था तो वह मेरे लिए टॉर्चर के सामान था। मै रोता था। मुझे प्रतिदिन पेनिक अटेक आता था। मै बहुत डर गया था। मै अपने हॉस्टल के साथियों से बात भी नहीं करता था। मेरा खाना खाना भी दूभर हो गया था। बोलने के लिए बहुत बहुत रिहर्सल के बाद भी मेरी जुबान तालू से चिपक जाती थी। मुझे नहीं मालूम कि यह कैसे ठीक हो सकता है। मेरा वजन ५ किलो कम हो गया था।
क्या इसमें से कोई डर है:
लोगों के सामने बोलने में,
लोगों के सामने शर्म से लाल होने में,
पार्टियों में भोजन करते समय पानी गिराने या गले में भोजन अटकने,
जब अन्य लोग मौजूद हों तो कुछ लिखने ,
काम करते समय आपको कोई देख रहा है,
भीड़ में जाने में,
सार्वजानिक गुसलखाने का प्रयोग करने,
तो आप सोशल फोबिया से ग्रस्त हो सकते हैं।
कुछ लोग इसके साथ पेनिक अटेक भी महसूस करते हैं।
अपनी परेशानी काम करने के लिए सोशल फोबिया से पीड़ित व्यक्ति सार्वजनिक समारोहों से जितना संभव हो सके दूर रहता है। समारोहों में बात करना, मीटिंग में शामिल होना, भाषण देना, सामूहिक कार्य, फोन पर बात करना, सार्वजनिक यातायात साधनों का प्रयोग करना उसके लिए कठिन होता है। इन सब कारणों से उसका जीवन बहुत संकुचित हो सकता है।
नरेश की कहानी:
मै बी एड की पढाई कर रहा हूँ। जहाँ तक मुझे याद है मै शुरू से ही सामजिक उद्दिग्नता से पीड़ित था। बचपन में भी मै अकेला ही रहता था। मेरे कोई मित्र नहीं थे। जब मेरे साथ कोई नहीं होता तब भी मुझे ऐसा लगता है कि लोग मेरे बारे में सोच रहे हैं। हर समय जब मै कोई कार्य करता हूँ या कोई बात करता हूँ तो मुझे ऐसा लगता है कि मेरी बात या कार्य ठीक न होगा या लोगों को अच्छा न लगेगा। और मै हंसी का पात्र बन जाऊँगा। बात करना भी बहुत प्रयत्नपूर्वक हो पाता है। इसके लिए भी मुझे लम्बी रेहेर्सल करनी पड़ती है। मै अपने बारे में बहुत निगेटिव सोचता हूँ। अगले हफ्ते से मुझे पढ़ाना है। इसकी कल्पना भी मुझे डरावनी लगती है। पिछले सेमेस्टर में जब मैंने छात्रों को पढाया था तो वह मेरे लिए टॉर्चर के सामान था। मै रोता था। मुझे प्रतिदिन पेनिक अटेक आता था। मै बहुत डर गया था। मै अपने हॉस्टल के साथियों से बात भी नहीं करता था। मेरा खाना खाना भी दूभर हो गया था। बोलने के लिए बहुत बहुत रिहर्सल के बाद भी मेरी जुबान तालू से चिपक जाती थी। मुझे नहीं मालूम कि यह कैसे ठीक हो सकता है। मेरा वजन ५ किलो कम हो गया था।
विशेष डर
विशेष डर (specific phobias):
हर व्यक्ति किसी न किसी बात से डरता है। परन्तु विशेष डर या फोबिया तब कह सकते हैं जब कोई व्यक्ति किसी विशेष स्थान या वस्तु से इतना डरता है कि वह ऐसी वस्तु या स्थान का सामना करने से भी डरता है एवं ऐसी परिस्थितियों को अवोइड करता है। फोबिया से पीड़ित व्यक्ति भी उसी प्रकार से प्रतिक्रिया करता है जैसे कि पेनिक अटेक से पीड़ित व्यक्ति, परन्तु एक अंतर है कि यह प्रतिक्रिया उस वस्तु या स्थान की उपस्थिति में होती है। फोबिया से पीड़ित व्यक्ति उस स्थान या वस्तु से भागने के लिए तत्पर रहता है। परिस्थिति के अनुसार फोबिया जीवन को सीमित कर भी सकते हैं या नहीं भी। उदाहरनार्थ कोई व्यक्ति जो सांपों से डरता है अगर शहर में रहता है अपना सारा जीवन आराम से काट सकता है। जबकि कोई किसान यदि इसी फोबिया से पीड़ित हो तो उसका जीवन दूभर हो सकता है।
पीड़ित व्यक्ति यह जनता है कि उसका डर अनावश्यक है परन्तु फिर भी इससे उसकी प्रतिक्रिया में कोई अंतर नहीं आता। आमतौर पर ज़्यादातर फोबिया जानवरों, ऊंचाई, बंद कमरों, रक्त, चोट लगना, तूफ़ान, बिजली चमकने या हवाई यात्रा से होता है।
फोबिया से पीड़ित अधिकांश लोग कोई इलाज नहीं करवाते। वे केवल डरावनी वस्तु को अवोइड करते हैं। उनके डर का कारण स्पष्ट रूप से ज्ञात होता है।
कविता की कहानी
कविता एक आफिस में क्लर्क है। उसे बंद कमरों का बहुत डर लगता है। वह पांचवे माले पर स्थित अपने आफिस जाने के लिए लिफ्ट का इस्तेमाल नहीं करती। यदि उसे दिन में कई बार आफिस आना जाना पड़े तो वह अवोइड करती है। कभी भी किसी कमरे में अकेली नहीं रहती। कोई न कोई बहाना बना कर वो अपने साथ किसी को बुला लेती है।
हर व्यक्ति किसी न किसी बात से डरता है। परन्तु विशेष डर या फोबिया तब कह सकते हैं जब कोई व्यक्ति किसी विशेष स्थान या वस्तु से इतना डरता है कि वह ऐसी वस्तु या स्थान का सामना करने से भी डरता है एवं ऐसी परिस्थितियों को अवोइड करता है। फोबिया से पीड़ित व्यक्ति भी उसी प्रकार से प्रतिक्रिया करता है जैसे कि पेनिक अटेक से पीड़ित व्यक्ति, परन्तु एक अंतर है कि यह प्रतिक्रिया उस वस्तु या स्थान की उपस्थिति में होती है। फोबिया से पीड़ित व्यक्ति उस स्थान या वस्तु से भागने के लिए तत्पर रहता है। परिस्थिति के अनुसार फोबिया जीवन को सीमित कर भी सकते हैं या नहीं भी। उदाहरनार्थ कोई व्यक्ति जो सांपों से डरता है अगर शहर में रहता है अपना सारा जीवन आराम से काट सकता है। जबकि कोई किसान यदि इसी फोबिया से पीड़ित हो तो उसका जीवन दूभर हो सकता है।
पीड़ित व्यक्ति यह जनता है कि उसका डर अनावश्यक है परन्तु फिर भी इससे उसकी प्रतिक्रिया में कोई अंतर नहीं आता। आमतौर पर ज़्यादातर फोबिया जानवरों, ऊंचाई, बंद कमरों, रक्त, चोट लगना, तूफ़ान, बिजली चमकने या हवाई यात्रा से होता है।
फोबिया से पीड़ित अधिकांश लोग कोई इलाज नहीं करवाते। वे केवल डरावनी वस्तु को अवोइड करते हैं। उनके डर का कारण स्पष्ट रूप से ज्ञात होता है।
कविता की कहानी
कविता एक आफिस में क्लर्क है। उसे बंद कमरों का बहुत डर लगता है। वह पांचवे माले पर स्थित अपने आफिस जाने के लिए लिफ्ट का इस्तेमाल नहीं करती। यदि उसे दिन में कई बार आफिस आना जाना पड़े तो वह अवोइड करती है। कभी भी किसी कमरे में अकेली नहीं रहती। कोई न कोई बहाना बना कर वो अपने साथ किसी को बुला लेती है।
Subscribe to:
Posts (Atom)